moksh ki sadhnaa
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मोक्ष की साधना के सात कठिन नियम।
युगों युगों से चली आ रही ऋषि परंपरा के अन्तर्गत आत्म साक्षातकार एवं सर्व कामनाओं की सिद्धि के संदर्भ में साधना के सात कठिन नियम हैं। अतः कठिन नियम होने के कारण पांच दिन की साधना के उपरांत साधना का फल या परिणाम भी शीघ्र पांचवें दिन के सूर्य अस्त हेने से पहले ही आ जाता है।
नियम तो यही है की मोक्ष की परम पवित्र साधना में प्रवेश कराने से पहले जब तक पांच एवं ग्यारह दिन की साधना के द्वारा साधक की व्यवस्था एवं अध्यात्म ज्ञान के अनुभवों से तृप्ती नहीं हो जाती तब तक वस्तुतःआत्मज्ञान के हेतु दीर्घ काल तक की साधना में ठहरे रहना असम्भव है। वस्तुतः वो कौनसी ऐसी महाविद्या है जिसके माध्यम से धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्र्ती होती हो..? जातीपात सम्प्रदाय की विडम्बना से अत्यंत दूर वो साधना पद्धति सबके लिये हो।
राजविद्य राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तम्। प्रत्यक्षवगमं धर्म्यं सुसुखमकर्तुमव्ययम्।।
अर्थात् यह विज्ञान सहित ज्ञान सब विद्याओं का राजा ( ब्रह्मविद्या ) सब गोपनीयों का राजा,अति पवित्र,अति उत्तम प्रत्यक्ष फलवाला,धर्मयुक्त,साधना करने में बड़ा सुगम और अविनाशी है।
वस्तुतः उपरोक्त परम विद्या के लोप हो जाने से अध्यात्म ज्ञान की दुर्गती और भारतीय संस्कृति का बुरी तरह से पतन।नतिजा ना ना प्रकार के पंथ एवं सम्प्रदायों का जन्म।
इस वैश्नवी विद्या के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में जितनी भी तरह की साधना पद्धति है वो सब की सब रजस वं तंत्र पद्धति है यानी तामसी साधना तथा राजसी साधना जो की ऋद्धि, सिद्धि एवं वैभव तो दे सकती परंतु ब्रह्मज्ञान का कारण कभी नहीं बन सकती।

ध्यान रहे, अगर ईश्वर एक है तो, सबके लिये नियम भी एक ही होंगे। अब में विषय पर आता हूँ….अध्यात्म मार्ग का प्रथम कदम उदर की शुद्धी से उठता है और पतञ्जलि के अनुसार नियम का आधार भूत अंग भी शौच ही है इसी विषय पर वेद बचन है….
शौचाचार विहीनस्य समस्ता निस्फलाः क्रियाः।।
अर्थात जिस साधक या साध्वी की शौच क्रिय ठीक नही है अर्थात पेट ठिक नहीं है वह लाख प्रयास करने पर भी राजविद्या या वैश्नवी साधना के अंतर्गत उनको परिणाम नहीं आता यानी साधना खण्डित हो जाती है अतः अष्टांग योग के अंतर्गत नौली,धोती,वस्ती इत्यादि क्रियाएं भी उदर शुद्धी के निमित्त कराई जाती हैं जो की गौ के घृत तथा दूध तथा जैविक अंन के बिना सम्भव ही नहीं। इसी लिए कहा गया है।
गेहूँ जैसा अंन नहीं। गौ जैसा धन नहीं।।

श्रीमद्भगवद्गीता बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः।अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ततात्मैव शत्रुवत्।।
जिस जीवात्माद्वारा मन और इन्द्रियोंसहित शरीर जीता हुआ है,उस जीवात्माका तो वह आप ही मित्र है और जिसके द्वारा मन तथा इन्द्रियोंसहित शरीर नहीं जिता गया है,उसके लिये वह आप ही शत्रुके सदृश शत्रुतामें बर्तता है।
सारी दुनियां के चिकित्सक, डॉक्टर, वैद्य इत्यादि सत्तता की दुहाई देते हुए कहते है की सब बिमारीओं की नानी कब्ज है। इतनी अकल तो साधक को होनी ही चाहिए की जब एक वैद्य भी रोगी का पेट साफ किए बिना दवा नहीं देता तो कौन मूढ होगा जो तुम्हें ब्रह्म ज्ञान देदेगा किन्तु सारी दुनियां के तथा कथित धर्म गुरु अज्ञान वश एही काम कर रहे हैं तभी तो साधना करते करते सारी जिन्दगी बित जाती है परिणाम कोई हाथ आता नहीं फल तो बड़ीदूर की बात रही उलटे नाना प्रकार के असाध्य रोगो का सामना करना पड़ता है और फिर जीवन के अंत में ठन ठन गोपाल यानी माया मिली न राम!
देखा देखी करे योग। घटे काया बड़े रोग।
परप परा ज्ञान का यह अकाट्य सिद्धांत और नियम है की जब तक साधक का पेट ठीक नहीं हो जाता तब तक ना तो उसे साधना कराई जाती है और ना ही दिक्षीत किया जाता है वास्तव में जो ऐसा करते हैं वो पाप के भागी बनते है

मोक्ष की साधना का पहला नियम~
वास्तव में ब्रह्म मूहर्त या अमृत वेला की महिमा कौन नहीं जानता सुबह उठते ही ब्रह्म मुहूर्त तीन के बाद और चार से पहले पेट साफ हो जाना चाहिए और ध्यान रहे,इस साधना में पेट साफ करने के लिए किसी भी तरह की दवा का प्रयोग नहीं कर सकते प्राकृतिक तोर पर पेट साफ होना चाहिए।

साधना का दूसरा नियम~
गंगा पाप विनाशीनीम्
गंगा जी का स्नान भी सुबह चार से पहले हो जाना चाहिए और ध्यान रहे, इस मोक्ष दायिनी साधना में गंगा स्नान के अतिरिक्त दुसरी कोई भी नदी का स्नान मान्य नहीं होगा।

साधना का तीसरा नियम है
समय पर बैठना। अगर आप पांच दिन या ग्यारह दिन की साधना करना चाहते हैं तो, पहले दिन यदी आप 4.15 पर बैठेंगे तो पांचों दिन 4.15 पर ही बैठना होगा किंतु अगर आप किसी कारणवश लेट हो गए और 4.15 की बजाय 4.17 पर बैठ गए तो साधना खंडित हो जाएगी यानी परिणाम नहीं आएगा।